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वैश्वीकरण के कारण भारतीय कृषक ों द्वारा सामना ककए गए समस्याओों का अध्ययन

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Academic year: 2020

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वैश्वीकरण के कारण भारतीय कृषक ों द्वारा सामना ककए गए समस्याओों का

अध्ययन

चेतना शमाा

1

, डॉ एच. पी. कसोंह

2

अथाशास्त्र कवभाग

1,2

चौधरी चरण कसोंह कवश्वकवद्यालय, मेरठ

सार

औद्य कगकीकरणएवोंशहरीकरणपरआधाररतआधुकनकीकरणकेबावजूदहमारीअथाव्यवस्थामेंकृकषकी भूकमकामहत्वपूणा बनीहुईहै।सकल घरेलूउत्पाद में 21 प्रकतशतय गदान, कुल जनसोंख्याके 65 प्रकतशत

की कृकष पर कनभारता, 56.7 प्रकतशत काया बल क र जगार, सम्पूणा खाद्य एवों पौकिक पदाथों के उत्पादन

तथाजूट, सूतीवस्त्र, चाय, काफी, रेशम, रबर, खाद्यप्रसोंस्करणआकदमहत्वपूणाउद्य ग ोंकेकलएआवश्यक

कच्चे माल काउत्पादन आकद इसके प्रमाणहैं। रािर केपूरेकाया बल का द -कतहाई श्रकमक तथा सैन्यऔर

अद्र्धसैकनक बल ोंकेकलएतीन चौथाई सैकनक ग्रामीणक्षेत् ोंसे आते हैं।उनके शारीररक तथामन वैज्ञाकनक स्वास्थ्य के कलए कृकष एवों ग्रामीण अथाव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण ह ना आवश्यक है। ग्रामीण अभी भी एक बचतकरने वालासमुदायहै।सभीबैंक ोंकीग्रामीण शाखाओोंकाजमा- ऋणअनुपातऔसतन 30 प्रकतशत

है। इसका अथा है कक गाोंव वाल ोंकी कुल बचत का केवल 30 प्रकतशत ग्रामीण ों क ऋण के रूप में कदया

जाता है। शेष 70 प्रकतशत अन्य क्षेत् ों के कवकास हेतु काम आता है। अत: कृकष क्षेत् देश के कवकास हेतु

कवत्तीयसोंसाधन ोंक पूोंजीमुहैयाकरनेका कामकरताहै।गत कुछवषोंमेंयहभीतथ्यउभर करआयाहै कक कृकषसे इतरअन्य द न ोंघटक ों-उद्य ग और सेवा- केउत्पाद ोंकी 40-50 प्रकतशतमाोंग कृषक ोंकीक्रय

शक्तियानी आयपरकनभारकरती है।कृकष क्षेत्की आयबढ़नेसे अन्य क्षेत् ोंकाभीबाजारकवस्तार ह ताहै और घटनेसे उन्हेंमोंदी कासामना करना पड़ताहै। कृकषउत्पादन घटने-बढ़नेका सीधा-सीधा असरआम

आदमी द्वारा खरीदेजानेवाले खाद्यपदाथोंएवोंअन्य वस्तुओोंकेमूल् ोंपरपड़ता है।उपर ि आोंकड़ ोंएवों तथ्य ों का कनष्कषा यह है कक कृकष क्षेत् की दशा और उथल-पुथल का अथाव्यवस्था के अन्य क्षेत् ों पर

महत्वपूणाप्रभावपड़ताहै।

1. प्रस्तावना

इसमें ककसी क सोंदेह नहीोंकक स्वतोंत्ता के बाद कृकष क्षेत्में भारी प्रगकतहुईहै।खाद्यान्न और दूध सकहत सभी खाद्य पदाथों-कपास, चाय, रेशम

जैसीनकदीफसल ोंकेउत्पादनमेंकईगुनावृक्ति हुईहै।पररणामस्वरूपभारत कृकषउत्पादन मेंन केवल आत्मकनभार हुआ बक्ति कृकष उत्पाद ों का कनयाात भी करने में समथा हुआ है। ककसान ों की आय बढ़ने, ग्रामीण क्षेत् ों में सड़क, कबजली,

पेयजल, स्वास्थ्य सेवाएों, कशक्षा आकद सुकवधाएों

पहुोंचने से ग्रामीण पररदृश्य में जबदास्त पररवतान आया है। कृकष की प्रौद्य कगकी, उत्पादकता,

उत्पादन कास्वरूप, आयकीमात्ा, उपभ ग का

स्वरूप, साक्षरता, स्वास्थ्य आकद में सुखद

पररवतान हुए हैं। इन सबके बावजूद कृकष और ग्रामीण क्षेत् ों की ककतपय समस्याएों गम्भीर बनी हुई हैं। यकद उनके ऊपर अकवलम्ब ध्यान नहीों कदयागयात क्तस्थकतकवस्फ टकह सकतीहै।इस समस्या का पहला कारण यह है कक देश की अथाव्यवस्थाने वाोंकछत गकत से प्रगकतनहीोंकीहै। दूसरे, इसकवकास केप्रकतफलमेंग्रामीणसमुदाय

क उसकाउकचतभागनहीोंकमला।

आजादी केसमय कुल जनसोंख्या कालगभग 75

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उत्पाद में उसका य गदान 61 प्रकतशत था।

वतामान में खेती पर जनसोंख्या की कनभारता 65

प्रकतशत और सकल घरेलू उत्पाद में उसका य गदान घटकर 20 प्रकतशत रह गया है। हमारे

अथाशास्त्रीइनद न ोंआोंकड़ ोंक अथाव्यवस्थाकी प्रगकत और आधुकनकीकरण का सूचक मानते हैं,

परोंतु इसका एक दूसरा पक्ष भी है। वह यह कक पहले देश की 75 प्रकतशत जनसोंख्या के पास 61

प्रकतशतआयथी, औरअब 65 प्रकतशतजनसोंख्या

क रािर की कुल आय के 20 प्रकतशत से काम

चलाना पड़ता है। इसका सीधा अथा यह है कक पहले कृकष में लगे प्रकत व्यक्ति तथा अन्य व्यवसाय ों में लगे ल ग ों की आय में एक और द का अोंतर था, ज अब बढ़कर एक और सात ह

गया है।आोंकड़ ों की दृकिसे भी ऐसाप्रतीत ह ता है या कराया जाता है कक खेती पर कनभारता घटी है, ज पहले 75 प्रकतशत था अब 65 प्रकतशत ह

गयीहै जबककवास्तकवकता यहहै ककआजादी के समय देश की आबादी थी 36 कर ड़ कजसके 75

प्रकतशत यानी 27 कर ड़ ल ग ों का मुख्य काम

खेती था। अब जनसोंख्या है 110 कर ड़, कजसका 65 प्रकतशतयानी 71 कर ड़ से अकधक ल गखेती

पर कनभार हैं। यानी सोंख्या 27 कर ड़ से बढ़कर 71 कर ड़ ह गयी है।घटी नहीोंबक्तिढाई गुणा

अकधक बढ़ी है। अथाात् कृकष भूकम के ऊ‚पर दबाव घटने की बजाय बढ़ा है। अन्य कवककसत देश ोंमेंजबखेतीकारािरीयआयमेंय गदानघटा त उसके साथ खेती पर कनभार जनसोंख्या उतने हीयाउससेअकधक अनुपातमेंघटी।इसीकारण बहुत से देश ों में कृषक ों की प्रकत व्यक्ति आय अन्य ल ग ोंसे अकधक है याबराबरहै।कमभीहै त अोंतरज्यादानहीोंहै।भारतमेंयहनहीोंहुआ। देश की जनसोंख्या तीव्र गकत से बढ़ने के कारण प्रकतव्यक्तिकृकषय ग्यभूकमका क्षेत्भीकमहुआ है।पहले प्रत्येकदेशवासी केकहस्से 0.36 हेक्टेयर

भूकम आती थी, अब लगभग 0.13 रह गई है और

2025 तकमात् 0.09 हेक्टयररहजाएगी, ज देश

केकलएआवश्यकखाद्यसामग्रीक पैदाकरने के कलए मुक्तिल से पयााप्त ह गी। जनसोंख्या और पररवार ों की वृक्ति से भूकम ज त ों के बोंटवारे के

कारण अकधकाोंश ज त इकाइयाों इतनी छ टी ह गई हैं कक आकथाक रूप से लाभकारी नहीोंरहीों। छ टे और सीमाोंत ककसान इस श्रेणी में आते हैं। इनकी सोंख्या 78 प्रकतशत है। 18.6 प्रकतशत ज त

ऐसी हैं ज पररवार की आवश्यकता पूरी करने

लायक भर हैं। केवल 1.4 प्रकतशत बृहत आकार

की (10 हेक्टेयरसे बड़ी) ज तेंऐसीहैं ज आकथाक

रूप से लाभकारी हैं। एक तरफ कृकष भूकम के लगातार कम ह ते जाने और ज त का आकार छ टा ह ने की समस्या है, दूसरी ओर उपजाऊ‚

भूकमक अन्धाधुन्ध औद्य कगक एवों शहरी बक्तस्तय ों के कवस्तार के कलए इस्तेमाल ककया जा रहा है।

जबकक देश भर में लगभग 6 कर ड़ 70 लाख

हेक्टेयर भूकम बेकार पड़ी है। इसमें से लगभग 2

कर ड़ 20 लाख हेक्टेयर खेती और 5 कर ड़ 5

लाख हेक्टेयर वन लगानेके काम आ सकती है। बेकार पड़ी रहनेसे इस समस्त भूकम की ऊ‚परी

कमट्टी की परत बहकर समुद्र में चली जाती है या बाोंध ों सकहत सभी जलाशय ों के तल पर जमकर उनकी जल ग्रहण क्षमता घटा रही है। भूकम राजस्व और ज त ों का ररकाडा सुधरने की बजाय कबगड़ताजारहाहै।ककसान ोंक भू-अकधकारपत्

कदयेजाने, खेत ोंकीचकबन्दी, रकजस्ट्रीकीप्रणाली

क आधुकनक, पारदशी और चुस्त-दुरुस्त बनाये

जाने का काम केवल कुछ राज्य ही कर पाएोंगे। अकधकाोंश प्रदेश ोंमें यह अत्यन्त दुरावस्था में है। इस कारण गाोंव ों में अनावश्यक मुकदमेबाजी,

कववाद और कहोंसा की घटनाएों आम बात हैं। यह क्तस्थकत पहले ही कवस्फ टक ह चुकी है और आने वालेसमयमेंअत्यकधकभयावहह नेवालीहै।

2. भारीतय कृषि के षिए बनाये गए षनयमो

में कमी

कृकष उत्पाद ों की वतामान मूल् नीकत भी ठीक नहीोंहै। कहने क त खेती की 24 प्रजाकतय ों के

कलए केन्द्र सरकार न्यूनतम समथान मूल् प्रत्येक वषा घ कषत करती है। परोंतु उनमें से गेहों, चावल,

कपास और गन्ने क छ ड़कर ककसी भी वस्तु की सरकारी खरीद की व्यवस्था नहीों है। इन चार फसल ों की खरीद भी केवल पोंजाब, हररयाणा,

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जैसी ह नी चाकहए वैसी नहीों है। प्राय: देखने में

आया है कक जब भी ककसान उत्पादन बढ़ाता है,

दाम कगर जाते हैं। सरकारी खरीद या त ह ती नहीोंहै, और ह तीभी है त आोंकशकरूप से और

कवलम्ब से। पररणामत: ककसान क ज भी दाम

कमलेउसपरबेचने क कववशह जाता है।दूसरे,

ज समथान मूल् सरकार कनधााररत करती भी है,

वह लाभकारी नहीों ह ती हैं। केन्द्र सरकार के कृकष लागत एवों मूल् आय ग द्वारा लागत आोंकलन की कजस प्रणाली का उपय ग ककया जाताहै, वह त्ुकटपूणाहै।लागतकाकहसाबलगाते

समय भूकमकी कीमतऔर अन्य पूोंजीकी लागत क सक्तिकलत नहीों ककया जाता। प्राकृकतक आपदाओों और कीड़ ों व बीमाररय ों से ह ने वाली हाकन का कहसाब लागत में नहीोंजुड़ता। ह ना यह चाकहएककखेतीलागतकाकहसाबउसीफामूालेसे लगे ज उद्य ग मोंत्ालय का औद्य कगक लागतएवों मूल् ब्यूर (बी.आई.सी.पी.) औद्य कगक उत्पाद ों

के कलए करता है। ऐसा न करना सरासर भेदभावपूणारवैयाहै।

मूल् ों की इस त्ुकटपूणा एवों अन्यायपूणा नीकत का पररणाम यहह ता है ककककसान ोंक उकचतऔर लाभकारीमूल्नहीोंकमलपाता।उल्लेखनीयतथ्य यह भी है कक कृकष उत्पाद ों के मूल् दूसरी वस्तुओों के मूल् की तुलना में लगातार कपछड़ते चले जाते हैं। इसे अथाशास्त्र में सापेक्ष मूल् का कसिाोंत कहा जाता है। इस अनुपात क व्यापार दरें कहते हैं।मूल् ोंकी इसी आनुपाकतक प्रणाली से यह कनकित ह ता है कक अथाव्यवस्था के ककस अोंग क उसके उद्यम का क्या प्रकतफल कमलता है।इसीसे रािरीयआयमेंउसकाकहस्सातयह ता है। यकद व्यापाररक दर ों के कपछले लगभग पाोंच दशक ोंयानी 50 वषाकेइकतहासक देखाजाएत

पता चलता है कक कृकष के सापेक्ष मूल् दूसरे मूल् ों के अनुपात में प्राय: 82 से 95 प्रकतशत के

बीच रहे। यानी म टे तौर परकृकष क्षेत् क केवल मूल् ोंकेकारणप्रकतवषा 12 प्रकतशतघाटाउठाना

पड़ाहै।यहएकमुख्यकारणरहाहै कृषक ोंऔर ग्रामीण ों की आय और अन्य व्यवसाय ों में लगे ल ग ों की आय में बढ़ते अन्तर का। इस लगातार

घाटे केबावजूद कुछ अथाशास्त्री और उद्य गपकत कृकष आय पर टैक्स लगाने की बात करते रहते हैं।यह भीवास्तकवकताहै ककअन्य सभीउत्पाद ों की खरीद पर कबक्री कर तथा अपनी उपज की कबक्री पर मण्डी टैक्स आकद त ककसान देता ही है।अन्यव्यवसाय ोंकीतरहउसकीशुि आयया त ह ती नहीोंया नगण्य ह ती है। अत: टैक्स का

क ईऔकचत्यनहीोंकदखता।

नीकत कनधाारक ों, अथाशाक्तस्त्रय ों तथा अन्य

व्यवसाइय ों का एक बड़ा वगा यह कशकायत भी आमतौरसे करतारहता हैकककृकषक्षेत्क भारी मात्ामेंसक्तिडीकमलतीहै।यहधारणाभीसवाथा कमथ्या और भ्रामक है। चाहे आन्तररक मूल् ों की बात ह अथवा अोंतररािरीय मूल् ों की-द न ों के

कहसाब से कृकष क्षेत् में सक्तिडी नकारात्मक रही है। आन्तररक सापेक्ष मूल् ों के कवषय में ऊ‚पर

पहलेही स्पिककयाजाचुकाहैककखेतीलगातार घाटे में रही है। अन्तररािरीय मूल् ों के बारे में त यह पहलू और भी अकधक मजबूती से उभर कर आता है। बीस कवककसत देश ों के "ओ.ई.सी.डी.

क्लब" द्वारा अपनी कृकष क सकल कृकष घरेलू

उत्पाद का 44 प्रकतशत सक्तिडी केरूप में कदया

जाता है।दूसरे शब् ोंमें अमरीका, यूर प, जापान

सकहत अनेक देश ोंके ककसान ों की आमदनी का

44 प्रकतशत त सरकारी सक्तिडी के रूप में

कमलता है। गत एक वषा में लगभग 350 कर ड़

डालरसक्तिडीइनसरकार ोंने अपनेककसान ोंक दी, ज भारत की कुल रािरीय आय का 55

प्रकतशत ह ता है। अगर भारत के सकल कृकष उत्पादकीदृकिसेदेखेंत वहहमारेसारेककसान ों कीपैदावारकेमूल्का ढ़ाईगुणासे ज्यादाह ता है।कफरकैसे यह आशाकी जातीहै कक भारतीय ककसान अन्तररािरीय बाजार में अमीर देश ों के ककसान ों का मुकाबला कर लेगा? कवश्व व्यापार

सोंगठन सोंकध पर हस्ताक्षर करते समय यह तय हुआ था कक सब देश कृकष क्षेत् में सक्तिडी क घटाएोंगे और अन्तत: दस वषा में पूणात: समाप्त

कर देंगे। घटाना त दूर अमीर देश ों ने अपनी सक्तिडी और बढ़ा दी, खासकर अमरीका और

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मेंहुएसिेलन ोंमेंभारतसकहतसभीकवकासशील देश ों ने यह मुद्दा उठाया भी, परन्तु अमीर देश

टससे मसनहुए।

3. षवश्वव्यापारसंगठन एवं भारतीय कृषि

कवकासशील और अकवककसत देश ों के कलए कवश्व व्यापार सोंगठन में यह शता थी कक यकद उनकी सक्तिडी सकल कृकष उत्पाद के 10 प्रकतशत से

कमहै त उसेकमकरने कीबाध्यतानहीोंह गी। भारत में सक्तिडी उस समय भी 6 प्रकतशत से

कमथी, अबत 3 प्रकतशतसे भीकमरहगई है।

इसका अकधकाोंशभागउवारक ोंपरदीजानेवाली सक्तिडीहै।सरकारकेकईअध्ययन ोंसेयहबात सामने आई कक उवारक ों की सक्तिडी का 60

प्रकतशतअोंशत उवारककम्पकनय ोंक प्राप्तह ता है और केवल 40 प्रकतशत ककसान ों तक पहुोंचता

है। कबजली पर कमलने वाली सक्तिडी की असकलयत यह है कक रािर की कुल कवद्युत का मुक्तिल से 12 प्रकतशत ककसान ों क कमलता है।

जबकक कदखाया जाता है 28 से 32 प्रकतशत।

वास्तकवकता यहहै, ककज कबजलीशहर ोंमेंऔर

उद्य ग ों द्वारा च री की जाती है उसका बड़ा भाग ककसान ों के खाते में डालकर यह भ्रम फैलाया जाताहै।सरकार ोंकीइसध खाधड़ीकी न्याकयक जाोंचह नीचाकहए।

कवककसतदेश ोंद्वाराभारीसक्तिडीकेकारणकवश्व व्यापार सोंगठन के ही कानून में यह प्रावधान ककया गया था कक भारत जैसे कवकासशील देश कृकष के आयात पर 100 प्रकतशत से लेकर 300

प्रकतशत तक आयात कर लगा सकते हैं। उल्लेखनीय है कक भारत ने प्राय: 65 प्रकतशत ही

आयात शुि लगाया। दूध, स याबीन का तेल

और अन्य खाद्य तेल ों पर त 15 प्रकतशत से 45

प्रकतशतही आपात शुि रखा। कभी-कभीशून्य

भीकर कदया। नतीजा यहहुआ कक भारी मात्ामें खाद्यतेल, दालेंऔर अबत गेहोंभीआयातहुआ,

इसने भारतीय ककसान की उपज के दाम कगराने काकामककया।सारेमात्ात्मकप्रकतबोंधभीभारत ने समाप्त कर कदए। न सक्तिडी रही, न प्रकतबोंध

रहे, न उतना आयात कर लगा कजतना कवश्व

व्यापारसोंगठनसमझौतेमेंअनुमकतहै, और नही

कवककसत देश ों ने अपनी सक्तिडी घटायी। इस प्रकार भारतीय कृकष क वैश्वीकरण का नुकसान त झेलनापड़रहाहै, लाभकुछभीनहीों।

गत एक वषा में ककये गए गेहों के आयात ने त सरकार की ककसान कवर धी नीकत क पूरी तरह कसिकरकदया। भारतीयककसानकेगेहोंकादाम त रखारु. 650 प्रकत Ïक्वटलऔर कवदेशीककसान

से खरीदा 1100 रुपए प्रकत Ïक्वटल। वह भी कम

प्र टीनवाला, अकधकनमीवालाऔर 30 सेज्यादा

खरपतवार ों से अपकमकश्रत सड़ा-बीमार गेहों।

सेनेटरीऔर फाइट सेनेटरी केसारे अन्तररािरीय मानक भीकशकथलकर कदए गए और आयात कर भी शून्य कर कदया। सरकारी खरीद के कलए ही नहीों, कनजी कम्पकनय ों द्वारा ककये आयात पर भी।

क्यावे देशभी कभी हमारेकृकष उत्पाद ोंकेसाथ ऐसा बतााव करेंगे? कदाकप नहीों। हमारी उपजत

इन कारण ों से अस्वीकार कर दी जाती है और प्रकतबक्तन्धत भी। यह स्मरण रखना जरूरी है कक

1998 में भारत सरकार ने गेहों का समथान मूल् 550 रुपए प्रकत Ïक्वटल रखा था। तब से गत वषा

तक प्राय: 5 प्रकतशत की दर से मुद्रास्फीकत बढ़ी

है। इस कहसाब से कपछले साल गेहों का भाव लगभग 750 रु. और इस साल 800 रु. ह ना

चाकहए था।जबकक गत वषा 650 रु. और इस वषा 750 रु. दाम रहा। यकद ठीक दाम रखे गये ह ते

त ककसानकफरभण्डारभरदेता।

सबसे बड़ाझूठ त सरकार कृकषक प्राथकमकता देने का प्रचार करके ब लती है। यकद कृकष में ह रहे कनवेश और पूोंजी कवकनमााण के आोंकड़ ों पर नजर डालें त यहपूरी तरहउजागरह जाताहै। गत चार पोंचवषीय य जनाओों के काल में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.3 प्रकतशत कनवेश कृकष

क्षेत् मेंहुआ।इसमेंकनजीकनवेशभीसक्तिकलत है। सावाजकनक (सरकारी) कनवेशक लें त केवल 0.3

प्रकतशत ही है। इस काल में य जना के मद में कजतनाव्यय हुआ उसकाभीकेवल 5 प्रकतशतसे

कम कृकष क कमला। पूोंजी कवकनमााण के आोंकड़ ों से पता चलताहै कक 1970-80 केदशक ों में देश

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घटकर 10 से 11 प्रकतशतरहगयाहै।सावाजकनक

पूोंजीकवकनमााणत 4 प्रकतशतह गयाहै।

सवााकधक उपेक्षा कसोंचाई के कवकास की हुई है। यह सवाकवकदत है कक खेती के कलए सबसे महत्वपूणा आदान कसोंचाई का पानी है। उसके कबना नउवारकका प्रय गह सकताहै और नही अच्छे बीज ों का। कवडम्बना यह है कक अभी भी मात् 40 प्रकतशतकृकष क्षेत्क कसोंचाईकी सुकवधा

प्राप्त है।शेष 60 प्रकतशतखेतीवषाा केभर सेहै।

ग्रामीणक्षेत् ोंके 80 प्रकतशतगरीबइन्हीोंवषााधाररत

क्षेत् ोंमेंरहते हैं।सूखा, अकाल, कुप षण, बीमारी

भीइन्हीोंइलाक ोंमेंअकधकरहतीहै।अत: ग्रामीण

और कृकष कवकास के समुकचत कवकास के कबना देश के कवकास की कल्पना भी क री कल्पना रहेगी।आठवीोंय जनातकराज्य ोंकेय जनाव्यय का 23 प्रकतशत कसोंचाई में लगता था। अब वह

घटकर 10 से 12 प्रकतशत रह गया है। केन्द्र ने

कपछले 20 वषोंमेंकसोंचाईकवकास मेंलगभगशून्य

कनवेशककयाहै।तबकैसे कृकष 4 प्रकतशतप्रकतवषा

की दर से कवकास कर पायेगी, जैसा कक नौवीों,

दसवीोंऔरग्यारहवीोंय जनामेंलक्ष्यरखागयाहै। ज त का छ टा आकार, पूोंजी का अभाव और

लाभकारीदामनहीों, कफरकवकासकैसेह गा? यह

कचन्ताकीबातहै।

4. सारांश

ककसान ोंसे जुड़ाएकमुद्दालगातारयहरहाहै कक शहरी और औद्य कगक बक्तस्तय ोंतथा अध सोंरचना यानी बाोंध, सड़क व अन्य पररय जनाओों के कलए

सरकार उनकी भूकम का वैधाकनक रूप से अकधग्रहण कर लेती है। यकद यह मान भी कलया जाए ककबाोंधयासड़कजैसीसावाजकनककहतकी पररय जनाओोंकेकलएअकधग्रहणउकचतहै, त भी

शहरी एवों औद्य कगक बक्तस्तय ों के कलए ककसान ों की भूकम का कानूनीअकधग्रहण ककसी भी दृकिसे उकचत नहीों कहा जा सकता। पहले त यह भी ह ता था कक सरकार कानूनी रूप से ककसी कृकषय ग्य भूकम का अकधग्रहण कर लेती थी और ककसानक मुआवजेकेरूपमें औने-पौने दामदे

देती थी। बाद में सवोच्च न्यायालय व अन्य न्यायालय ों के लगातार हस्तक्षेप और अनेक

कनणाय ोंके बाद इतना ह ने लगा कक ककसान ों क देर-सबेर उनकी भूकम का बाजार मूल् दे कदया

जाता है। पर भूकम का बाजार मूल् दे देना भर पयााप्तनहीोंह ता।सरकारद्वाराककसान ोंकीभूकम का अकधग्रहणकर कजनल ग ोंक भवनबनानेया अन्य औद्य कगक अथवा व्यावसाकयक गकतकवकधयाों चलाने के कलए आबोंटन ककया जाता है, उन्हें

अत्यकधक लाभ कमलता है। उस भूकम के दाम पाोंच-दस गुणा नहीों, सैकड़ ों-हजार ोंगुना तकबढ़

जाते हैं।और ककसान क उसका क ई लाभ नहीों कमलता, वह त बस बाजार का दाम कमलने से

मजबूर चुप ह कर बैठ जाता है। जबकक उसे उसके मौकलक स्थान से उजाड़ कदया गया ह ता है। ककसान के सामने ककठनाई यह ह ती है कक उसे कफर अपने आस-पास त क ई भूकम कमलती

नहीों है। यकद कहीों दूर कमले भी त उसका सामाकजक पररवेश बदल जाता है। खेती के अलावा उसके पास अन्य क ई कसिताह ती नहीों है। इन सब कारण ों से वह मानकसक रूप से टूट जाता है। इसकलए ककसी भी मूल् पर क्य ों न ह ,

ककसी भी शहरी या व्यावसाकयक गकतकवकध के कलए ककसान ों की भूकम का सरकार द्वारा कानूनी रूप से अकधग्रहणपूरी तरह से बोंद ह ना चाकहए। औद्य कगक, व्यापाररक गकतकवकधय ों एवों शहररय ों

क अपने उपय ग के कलए बाजार से ही भूकम खरीदनेकीबाध्यताह नीचाकहए।

कवशेष आकथाक क्षेत् (एस.ई.जेड) की कथा यही

है।इसमेंकईबारककसान ोंकेसाथ बहुतअन्याय ह जाता है। पकिम बोंगाल के कसोंगूर और नोंदी ग्राम इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उधर उ.प्र. में

राज्यसरकारनेररलायन्सक एककवद्युतइकाई स्थाकपत करने के कलए 2500 एकड़ जमीन

अकधग्रहीत करके दे दी। जबकक इसी प्रकार की कवद्युत इकाइयाों अमरीका व अन्य पकिमी देश ों में 50-60 एकड़ में चल रही हैं। ररलायन्स क

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अनुपय गी भूकम इसके कलए दे सकती थी। पर पहले 10 हजारएकड़की घ षणाऔरकफरभारी

कवर ध के चलते भी ढाई हजार एकड़ उपजाऊ भूकमदेनाकबिुलउकचतनहीोंहै।द

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